छठ महापर्व पर निबंध
भारत त्योहारों का देश है। यहां पर साल भर कोई न कोई त्यौहार अवश्य होते रहता हैं। चाहे वह दीपावली, होली, दुर्गा पूजा, ईद, क्रिसमस या कोई अन्य त्योहार हो। प्रत्येक धर्म के लोग अपना अपना त्यौहार यहां प्रतिवर्ष अपने समय अनुसार लगातार मनाते चले आ रहे हैं। इस प्रकार से भारत त्योहारों की भूमि है। प्रत्येक धर्म के लोग अपने श्रद्धा के अनुसार अपना अपना पर्व मनाते चले आ रहे हैं। वैसे तो भारत प्राचीन काल से ही देवभूमि के नाम से जाने जा रहे हैं।
आज हम उन त्योहारों में से एक प्रसिद्ध महापर्व छठ पूजा के बारे में आप सबों के सामने उससे संबंधित कथा एवं अन्य बातें शेयर करने जा रहा हूं।
छठ पूजा हिंदुओं का महत्वपूर्ण और बिहार का महापर्व त्योहारों में से एक है। छठ पूजा प्रतिवर्ष साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन यामहा पर्व मनाया जाता है। दूसरी बार यह कार्तिक मास में कार्तिकी छठ के रूप में भी मनाया जाता है। इस पूजा के पीछे अनेक कथाएं प्रचलित है। छठी मैया की पूजा करने से भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण होती है। इस पर्व का अपना अलग ही महत्व है। इसीलिए लोग बड़ी श्रद्धा भाव के साथ इस त्यौहार को प्रतिवर्ष मनाते हैं।
किन जगहों पर मनाया जाता है छठ पूजा
छठ पूजा भारत के विशेषकर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित जगह पर बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व बिहार का महापर्व है। इसके साथ ही साथ यह त्योहार झारखंड राज्य सहित नेपाल के तराई क्षेत्र, मॉरीशस एवं अन्य देशों में भी यह त्यौहार मनाया जाता है। सभी जगह त्यौहार मनाने का अपना अपना मान्यता हैं।
छठ महापर्व से जुड़ी प्रमुख प्रसंग
छठ महापर्व होने का सबूत हमें प्राचीन काल के घटनाओं से अवगत कराता है। इस पर्व से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित है। आइए हम नीचे उनसे जुड़ी कुछ कथाएं के बारे में जानते हैं।
कहा जाता है कि सूर्यपुत्र कर्ण घंटों पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया था।
छठ पूजा जुड़ी अन्य कथा महाभारत काल में जब पांडव अपना राजपाट सब कुछ हार गए थे तब द्रौपदी ने सूर्य देव और छठ मैया से प्रार्थना की। इस प्रार्थना से भगवान खुश होकर इसके परिणाम स्वरूप उसका खोया हुआ राज उसे फिर से मिल गया और महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुई।
पुराणों के अनुसार प्रियावत ने संतान प्राप्ति के लिए छठी मैया की पूजा की। काफी मन्नतें मांगने के बाद भी जब उसकी मन्नत पूरा नहीं हुई तब वह छठी मैया के शरण में गए और उससे पुत्र होने का वरदान मांगा। और उन्होंने मां छठी मैया की आराधना की परिणाम स्वरूप माता खुश होकर उसे पुत्र होने का वरदान दिया इसके बाद उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।
एक अन्य कथा के रूप में छठ पर्व से संबंधित कथा कहा जाता है कि प्रथम देवासुर संग्राम में असुरों से जब देवता हार गए थे। तब आदिति माता ने पुत्र प्राप्ति के लिए देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की पूजा की। इसके परिणाम स्वरूप उसे एक दिव्य पुत्र आदित्य भगवान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके बाद भगवान ने देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। उसी समय देवसेना षष्टी देवी के नाम पे हो गए और छठ पूजा का चलन हुआ।
कितने दिनों तक चलता है छठ पूजा एवं कैसे किया जाता है
छठ पूजा में छठी मैया की पूजा और भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह पूजा 4 दिनों तक लगातार चलती रहती है। इस पूजा में भक्तों द्वारा 4 दिनों तक छठी मैया की आराधना में जुट जाते हैं। यह पूजा मुख्यता महिलाएं करती है। बहुत जगह पर छठ पूजा आप पुरुष द्वारा भी करते हुए देख सकते हैं।
पहला दिन – नहाए खाय
छठ पूजा की शुरुआत पहले दिन नहाए खाय से होती है। इसी के साथ 4 दिन तक चलने वाला छठ पर्व की शुरुआत हो जाती है। सबसे पहले लोग अपने घरों की सफाई के बाद गंगा या उसकी सहायक नदी या तालाब में जाकर स्नान करते हैं। उसके बाद गंगा के जल से प्रसाद आदि भी बनाए जाते हैं। इस दिन लोग जो उपवास रखते हैं वह खाने में कद्दू की सब्जी मूंग की दाल चावल अधिग्रहण करते हैं।
खाना बनाने के लिए आम की लकड़ी मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है।
खरना
इस पूजा के दूसरे दिन लोग उपवास रखते हैं। और सूर्यास्त के पहले पानी का एक बूंद भी ग्रहण नहीं करते। इस दिन बात करने वाले थाने में अरवा चावल, गुड़ , एवं गन्ने के रस की खीर।
शाम के समय में सूर्यास्त के बाद व्रत करने वाले सर्वप्रथम भोजन ग्रहण करते हैं उसके बाद परिवार के अन्य सदस्य अपना भोजन ग्रहण करते। इस समय व्रत करने वाले एकांत में जाकर अपना भोजन ग्रहण करते हैं। शोरगुल आदि करना इस वक्त छठ पर्व के विरुद्ध है। इस दिन तली हुई सब्जी नमक चीनी आदि खाना मना है। इसके अतिरिक्त दिन को लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से 36 घंटा का उपवास शुरू हो जाता है।
संध्या अर्घ्य
छठ महापर्व के तीसरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारी करते हैं। इस दिन विशेष प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू, एक सूप में नारियल सहित पांच प्रकार के फूल एवं अन्य फल रखते हैं। इसके अलावा मिठाइयां मैं खाजा का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद हम सभी छठी मैया के घाट पर पहुंचते हैं। और वहां पर अपना सारा सामान छठी मैया के तट पर रखते हैं। इसके बाद जो उपवास में रहती है उसके द्वारा डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। हम सभी छठी मैया की पूजा करते हैं।
सुबह का अर्घ्य
छठ पूजा का आखिरी और चौथे दिन हम सभी फिर से सुबह को छठ मैया के घाट पर पहुंचते हैं। इस दिन उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के साथ ही साथ छठ पर्व की समाप्ति हो जाती है।
छठ पूजा का बड़ा ही महत्व है। कहा जाता है जो भी छठी मैया से श्रद्धा भाव के साथ जो कुछ भी मांगते हैं उसी वह मनोकामना पूर्ण होती है। लोग संतान प्राप्ति के लिए छठी मैया की आराधना करते हैं। इससे छठी मैया प्रसन्न होकर हमें सारी मनोकामना पूर्ण कर देती है।
छठ पूजा से संबंधित हमारा यह पोस्ट जरूर आपको अच्छा लगा होगा। आज हमारा लोगों का देश बदल रहा है लेकिन हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को सदा सदा के लिए बनाए रखना चाहिए और पुराने जितने भी त्यौहार है उसे हमेशा इसी तरह से मनाते आते रहना चाहिए।
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